ट्रेन प्रोजेक्ट

वो दिन मुझे आज भी ठीक से याद है फिर वह दिन ही ऐसा था कि मैं आज तक उसे भुला नहीं पाया कुछ यादें आपके दिलो दिमाग पर इतना बुरा असर छोड़ जाती है कि आप चाहकर भी उस दिन को भुला नहीं सकते 1 जुलाई मेरा जन्मदिन था 1987 का वो दिन मुझे आज भी ठीक से याद है उस साल मैं छत्तीसगढ़ में एक प्रोजेक्ट पर काम कर रहा था वह एक रेलवे का प्रोजेक्ट था एक जंगल के बीच से गुजरती हुई रेल की लाइन जो कि कई सालों से बन पड़ी थी उस पर काम चल रहा था वह मेरा पहला ऐसा प्रोजेक्ट था जो कि शहर से बहुत दूर और घने जंगलों में था सुना था कि 1980 के साल के दौरान भी उस प्रोजेक्ट पर काम शुरू किया गया था पर जब जंगल के बीच से रेलवे न की पटरियों पर काम करना शुरू हुआ तो एक-एक कर अचानक ही वहां के मजदूर गायब होने लगे कहते हैं कि किसी अनजान चीज ने उन मजदूरों का बहुत बुरा हाल किया था तो कुछ मजदूर डर के मारे उस जगह को छोड़कर भाग गए थे पर आज के अफसरों की माने तो जंगली जानवर की डर की वजह से वह सारे मजदूर जंगल छोड़कर भाग गए थे अब सच क्या था मुझे ठीक से पता नहीं था 2 जुलाई को मैं एक जीप लेकर पहली बार उस दूर दराज के जंगल के अंदर पहुंचा था मेरे जाने से एक दिन पहले ही वहां टेंट वगैरह लगाए गए थे और ट्रक से भारी भरकम सामान को पहुंचाया गया था पर मैंने जो भी उस जगह के बारे में सुना था तो मैंने टेंट में रुकने से साफसाफ इंकार कर दिया मैंने अपने लिए ही नहीं बल्कि मेरे साथ जो 1520 मजदूर थे उनको भी टेंट में रुकने से मना कर दिया क्योंकि मैं अकेला ही वहां का इंजीनियर भी था और उन मजदूर का सुपरवाइजर भी था इसीलिए जब तक कि हमारा वहां रुकने का ठीक से इंतजाम नहीं हो जाता और हमारी सुरक्षा के लिए गार्ड नहीं मिल जाते मैंने किसी को भी जंगल में रुकने नहीं दिया हम सब दिन भर वहां काम करते और अंधेरा होने से पहले ही जंगल से निकल जाते थे बीच-बीच में कुछ बड़े-बड़े अफसर अपनी बड़ी-बड़ी गाड़ियों में बैठकर दिन में एक बार आकर काम कहां तक पहुंचा है यह देखकर वापस चले जाते थे पर तब रेल लाइन का काम बहुत जल्दी होना जरूरी था क्योंकि उस काम के लिए गवर्नमेंट का खर्चा बढ़ता ही चला जा रहा था और हम सबका जंगल में आने जाने में काफी समय गुजर रहा था तो दिन भर में बस तीन या चार ही घंटे काम होता था इसीलिए फिर एक ट्रेन को जंगल के अंदर जहां तक पटरिया बिछी हुई थी वहां तक लाया गया और हम सबका उस ट्रेन में रहने का इंतजाम कर दिया गया और हमारी सुरक्षा के लिए कुछ हथियार दिए गए ट्रेन के आने के बाद मुझे उस जंगल में थोड़ा बहुत सुरक्षित लगने लगा था अब आने जाने की प्रॉब्लम तो सॉल्व हो गई थी लेकिन फिर भी मैं किसी को भी अंधेरा होने के बाद काम नहीं करने देता था क्योंकि उन सब मजदूरों की जिम्मेदारी मुझ पर ही थी पर उस जंगल की सच्चाई कुछ और ही थी जिससे हम सब अब तक अनजान थे मैंने सब मजदूरों को वार्निंग दे रखी थी कि अंधेरा होने के बाद सब लोग अपने अपने बोगी के दरवाजों को अंदर 6 से बंद कर लेंगे और मेरी इजाजत के बगैर कोई भी गाड़ी से नीचे नहीं उतरे अब काम थोड़ा तेजी से चल रहा था अब हम सुबह-सुबह उठकर दिन में सात या आठ घंटे काम करते थे कभी-कभी तो 10 से 12 घंटे तक काम चलता था और ऐसे ही दो चार दिन गुजर गए एक रात जब मैं उस ट्रेन में सो रहा था तो मैंने ट्रेन के बोगी पर बाहर की तरफ से नाखूनों से रोसने की आवाज सुनी उस आवाज से मेरी नींद टूट गई पर मैं जानता था कि शायद यह कोई जंगली जानवर या फिर कोई भालू वगैरह होगा तो उस वक्त मैंने सोचा कि इस वक्त बाहर जाना ठीक नहीं होगा और मैं फिर से सोने की कोशिश करने लगा पर रात भर मैंने कई बार वह खरोच नहीं की आवाज सुनी शायद कोई जानवर था जो इंसानी महक को सूंघ रहा था सुबह होते ही मैंने सब मजदूरों को रात की उस आवाज के बारे में बताया तो बाकी सब ने कहा वह तो बहुत गहरी नींद में थे तो किसी ने वह आवाज नहीं सुनी बस एक मजदूर था जिसने रात को लोहे पर खरोच नहीं की आवाज सुनी थी उसके बाद जब मैंने हमारी ट्रेन की सभी बोगियों को बाहर से देखा तो मैं हैरान रह गया ट्रेन की बोगियों पर बाहर की तरफ से जगह-जगह पर बड़े-बड़े नाखूनों से खरोश के निशान थे और वह निशान सिर्फ खरोच के नहीं थे बल्कि बहुत सी जगह पर भोगी के लोहे की 94 उस मोटी परत को चीरा पड़ा हुआ था मुझे समझते देर नहीं लगी कि यह काम किसी भालू या किसी जंगली जानवर का नहीं है और यह काम किसी इंसान का है क्योंकि ना जानवर और ना ही किसी इंसान की नाखून में इतनी ताकत होती है कि वह लोहे की मोटी परत को चीर कर निकल जाए वोह देख मैंने सब मजदूरों को बस सावधान रहने को कहा और अपने अपने हथियार चीज से सामना था हमें कुछ भी पता नहीं था पर मैं हर वक्त तैयार रहना चाहता था उसी दिन दिन भर काम करने के बाद रात में मैं कुछ तीन या चार मजदूरों के साथ बोगी के बाहर बैठा हुआ था सामने कुछ लकड़ियां इकट्ठा कर आग जलाई गई थी और हम सब उस जंगल में रात की उस ठिठुरते हुई ठंड में आग के सामने बैठकर उस आग की लपटों से अपने हाथ पैर सेक रहे थे तब एक मजदूर ने मुझसे कहा साहब और कितने दिन लगेंगे काम पूरा होने में तो मैंने कहा पता नहीं यही कोई 20 या 25 दिन और लग जाएंगे शायद तो उस मजदूर ने जंगल में यहां वहां देखते हुए मेरे बहुत पास आकर कहा साहब मुझे घर जाना है मुझे यहां अब और काम नहीं करना तो मैंने उससे कहा अरे तुम चिंता ना करो कुछ ही दिनों की तो बात है बस कुछ दिन के बाद मैं दूसरी टीम को यहां बुलाने वाला हूं फिर हम सब घर जा सकते हैं तो उसने थोड़ी रोती हुई आवाज में कहा नहीं साहब मुझे कल ही घर जाना है तो मैंने उसे समझाते हुए कहा अ भूपेंद्र नाम है ना तुम्हार तो उसने अपना सर हिलाते हुए हां कहा तो मैंने कहा तुम वही हो ना जिसने खरोचनहीं की आवाज सुनी थी हां देखो भूपेंद्र जंगल में यह सब चीजें होती रहती है बस कुछ ही दिनों की तो बात है और फिर भी तुम्हें यहां डर लग रहा है तो मुझे कह देना मैं कल ही तुम्हारे लिए गाड़ी का इंतजाम कर दूंगा ठीक है तो भूपेंद्र ने फिर से यहां वहा देखा और कहा मैंने उसे देखा है मैंने उसकी और हैरान नजरों से देखते हुए पूछा किसे उसने उतनी ही गंभीरता से मुझसे कहा उसे ठीक से पता नहीं वह कैसा दिखता है पर जिस तरह से वह हम सबको छुप-छुप के घूर रहा था उसके इरादे ठीक नहीं लगते शायद वह बहुत बुरी चीज है कोई बुरी आत्मा भूत ऐसा कुछ तो मैंने कहा उपेंद्र तुम खामखा ही खुद भी डर रहे हो और बाकी सबको भी डरा रहे हो पर उसका तो जैसे मेरे बात की तरफ ध्यान ही नहीं था वह इस वक्त भी चुपके से हमें देख रहा होगा साहब और इतना कहकर वो वह उठकर मजदूरों की बोगी में चला गया मैंने बाकी सब की तरफ देखा तो उनमें से एक मजदूर ने कहा साहब जाने दो उसे बहुत डरपोक है वह रात तो रात दिन में भी बहुत डरता है पहली बार ऐसी अनजान सुनसान जगह पर आया है ना और ऊपर से यह दिन रात जंगली जानवरों की आवाजें इसलिए वह डर रहा होगा तो मैंने अपनी गर्दन को हां में हिलाया और मैं ने उस मजदूर को आग बुझाने को कहा कि कहीं उस आग की वजह से किसी जंगली जानवर को नुकसान ना हो जाए और हम सब अपने अपनी बोगी के अंदर चले गए दूसरे दिन सुबह एक अजीब आवाज की वजह से मेरी नींद टूट गई जैसे कोई मुझे नींद से जगाना चाहता था बाहर ठंड इतनी ज्यादा थी कि मुझसे उठा भी नहीं जा रहा था मैं आधी नींद में ही था पर वह आवाज मुझे बार-बार सुनाई दे रही थी मैंने आधी नींद में ही बोझल आंखों से बोगे की खिड़की से बाहर देखने की कोशिश की मुझे दूर एक पेड़ के पीछे कुछ एक इंसानी परछाई जैसा कुछ दिखाई दिया मैंने फिर अपने सिर को थोड़ा सा हिलाया और नींद से जागने की कोशिश की और फिर से बाहर देखा वो पर यहां से वहां घूम रही थी मैंने फिर अपनी आंखों को मसलते हुए ठीक से देखा किसी परछाई ने पेड़ों के पीछे से झुकते हुए अजीब तरह से मुस्कुराते हुए मेरी तरफ देखा और अगले ही पल व परछाई पेड़ों के बीच ही कहीं गायब सी हो गई वह देख में उठकर बैठ गया मैंने बार-बार हर एक पेड़ को ठीक से देखा पर अब मुझे उन पेड़ों के बीच वहां कोई भी हलचल नजर नहीं आ रही थी मैंने थोड़ी देर के लिए कुछ सोचा और फिर उस बात को टाल दिया और फिर उठकर काम शुरू करने की तैयारी करने लगा आज सबने करीब करब 10 घंटे काम किया था और अब दिन ढल रहा था और शाम हो गई थी कुछ मजदूर रात के खाने का इंतजाम करने में लग गए तो कुछ बाकी सारे सामान को एक जगह जमा कर रहे थे दिन भर काम करने के बाद मैं भी बहुत थक गया था और थककर मैं अपने बोगे में आकर एक सीट पर लेट गया तभी मुझे बाहर से फिर वही आवाज सुनाई दी उस आवाज को सुन मैंने झट से उठकर खिड़की से बाहर झांक कर देखा तो बाहर भूपेंद्र खड़ा था मुझे देख वो थोड़ा सा मुस्कुराया तो मैंने उससे कहा वो तुम ही थे ना जो आज सुबह ऐसी आवाज निकाल रहे थे तो वह और थोड़ा मुस्कुराते हुए मेरी खिड़की के और पास आया और उसने कहा मतलब आपने भी वह आवाज सुनी है है ना तो मैंने फिर उसे कहा आवाज सुनी ही नहीं बल्कि तुम्हें भी देखा तुम वहां कहीं मुझे देख झाड़ियों के पीछे छुप रहे थे है ना तो भूपेंद्र गंभीर होकर बोला वो मैं नहीं था साहब वो वही था जिसे मैंने कल देखा था कोई आत्मा बुरी आत्मा सुबह जब मैंने वह आवाज सुनी मैं समझ गया कि यह उसकी आवाज है इसलिए मैं सर से पांव तक चद्दर उड़कर पड़ा रहा पर अब आपने भी उसे देखा है बोलो बोलो ना साहब देखा है ना तो मैंने फिर अपनी बात को ठीक करते हुए कहा नहीं उसे नहीं देखा मतलब मैंने किसी को नहीं देखा मैंने बस आवाज सुनी है और मैं यह भी जानता हूं कि वह किसी जानवर की आवाज थी हालांकि मैं इस बात को अच्छी तरह से जानता था कि सुबह मैंने किसी काली परछाई को देखा जरूर था पर मैं भूपेंद्र के सामने ऐसी बात नहीं करना चाहता था कि जिसे सुनकर वह और डर जाए और इस बात की वजह से बाकी सारे मजदूरों में भी डर फैल जाए खाना खाने के बाद उस रात मैंने आगे क्या करना है इस बारे में बहुत सोचा और मैंने दूसरे ही दिन पास के स्टेशन ऑफिस के लिए अपने हाथ से ही लेटर लिखना शुरू कर दिया तब मैंने एक अजीब चीज को महसूस किया था कोई तो बोगी के ऊपर अपने बड़े बड़े कदमों के साथ चल रहा था उसके भारी-भारी कदमों की आवाज आ रही थी अब वह भालू जैसा कोई जानवर था या फिर वह साया था पता नहीं था मैंने झट से अपनी बोगी की खिड़की को बंद कर लिया उसके दूसरे दिन मेरा जन्म दिन था तो उस दिन मैं मजदूरों को दिन भर का काम समझाकर पास ही के एक असिस्टेंट इंजीनियर के ऑफिस चला गया ताकि वहां से मैं अपने ऑफिस को लेटर और अपने घर फोन कर सकूं बहुत दिनों बाद मैंने अपने घर फोन किया था घर में सब मेरा इंतजार कर रहे थे मैं भी अब घर वापस जाना चाहता था क्योंकि पिछले कुछ दिनों में मैं जान चुका था कि वहां कोई तो खतरा है और अगर मैंने अभी पर ध्यान नहीं दिया तो जरूर किसी ना किसी मजदूर की जान जा सकती है अपना काम खत्म कर शाम को जब मैं वापस जंगल के अंदर पहुंचा तो देखा कि कोई भी वहां काम नहीं कर रहा था मैंने घड़ी में देखा तो अब तो बस 4:00 बज रहे थे जबकि हम रोज 5 बजे काम से छुट्टी करते थे जब मैं बोगियों के पास पहुंचा तो बोगी की सारी खिड़की दरवाजे बंद थे वहां भी कोई नजर नहीं आ रहा था मुझे वह थोड़ा अजीब लगा सब अचानक कहां गायब हो गए मैं फिर उस बोगी के पास चला गया जहां वह सारे मजदूर एक साथ रहा करते थे और मैंने बोगी का दरवाजा बजाया एक बार बजाया दो बार बजाया पर कोई आवाज नहीं अरे अरे कहां चले गए सब मैं यहां नहीं था तो काम से जल्दी छुट्टी ले ली क्या मेरी आवाज सुनकर एक मजदूर ने बोगी की खिड़की को थोड़ा सा खोला और मुझे देखा और धीरे से कहा साहब जल्दी से अंदर आ जाइए और फिर दूसरे एक मजदूर ने बोगे का दरवाजा खोला मैं उनकी बोगी के अंदर चला गया तो सब एक दूसरे से लिपट कर बैठे हुए थे कुछ तीन या चार मजदूर को बहुत बुरी तरह से बुखार चढ़ा हुआ था उनकी हालत देख मैं भी चौक गया अरे क्या हो गया है इनको चलो अभी के अभी हॉस्पिटल चलते हैं मैंने एक दो मजदूरों को उन्हें उठाकर गाड़ी में रखने को कहा और उन्हें अपने साथ चलने को कहा पर कोई भी अपनी जगह से 1 इंच भी हिलने को तैयार नहीं था तो मैंने फिर कहा अरे तुम्हें सुनाई नहीं देता क्या यह लोग बीमार है इन्हें जल्द से जल्द हॉस्पिटल ले जाना होगा भूपेंद्र भूपेंद्र चलो उठाओ इन सबको पर मैंने उन सब मजदूरों को गौर से देखा भूपेंद्र वहां था ही नहीं मैं समझ गया कि कुछ तो बहुत बड़ी गड़बड़ हो गई है एक मजदूर बहुत काप रहा था तो मैं उसके पास चला गया और उसे प्यार से पूछा यहां क्या हुआ है मुझे ठीक-ठीक बताओ और भूपेंद्र कहां है पहले तो वह बात करने से भी डर रहा था मैंने किसी तरह उसे समझाया अरे कुछ तो बताओ वरना मुझे आगे क्या करना है कैसे पता चलेगा तो उसने डरते हुए ही कहा साहब आपके जाने के बाद जैसे आपने बताया था हमने पटरियों पर काम करना शुरू किया दोपहर को हम खाना खाने वापस भोगियों के पास पहुंचे थे तो देखा कि सारा अनाज सब गायब था हमें लग कि शायद किसी जानवर ने अनाज खा लिया होगा पर उसके बाद जो हमने देखा वह देख सब बहुत डर गए कोई चीज थी जो हवा में लहरा रही थी पल भर में वह नीचे आकर हमारे बदन से होकर गुजर रही थी यह चारों वही मजदूर है जिनके बदन से होकर वह चीज गुजरी है तब से इन्हें बहुत तेज बुखार है इतना ही नहीं हमने उस चीज पर गोलियां भी चलाई पर उस पर गोलियों का कुछ असर ही नहीं हो रहा था हम जानते थे कि वह कोई इंसानी चीज नहीं है कोई शैतानी ताकत है हम उसे हरा नहीं सकते थे तो हमने किसी तरह एक दूसरे को सहारा दिया और भोगी के अंदर आकर छुपकर बैठ गए पर जब हम सब अपनी अपनी जान बचा रहे थे तब भूपेंद्र चीखते चिल्लाते हुए दौड़ते हुए जंगल में कहीं चला गया डर के मारे वह पागल हो गया था भागते वक्त वो चिल्ला रहा था कि यह वही चीज है जिसे उसने और आपने दे है कोई भयानक काला साया कोई आत्मा और अब वह हम सबको मार देगी वह हमें यहां से जिंदा जाने नहीं देगी साहब मैंने उस मजदूर को शान किया और कहा यह भूपेंद्र भीना क्या जरूरत थी जंगल में जाने की पता नहीं अब इस वक्त कहां होगा और फिर मैंने मजदूरों को समझाना शुरू किया देखो मैं आप सबसे एक बात कहना चाहता हूं हमारे पास जो एक गाड़ी है उसमें हम सब बैठकर जंगल से बाहर नहीं जा सकते और अब कुछ ही देर में अंधेरा हो जाएगा तो आज रात हम सब यही रुककर सुबह होने का इंतजार करेंगे और फिर सुबह होते ही सबसे पहले कुछ लोग मेरे साथ भूपेंद्र को ढूंढेंगे अगर वह मिला तो ठीक नहीं तो हम दोपहर होने से पहले ही जंगल छोड़कर निकल जाएंगे मेरी इस बात का किसी ने कुछ जवाब नहीं दिया शायद सबने इस बात को मान लिया था कि आज की रात उनकी आखिरी रात है पर मैं फिर भी हर किसी के पास जाकर उन्हें समझाने की कोशिश कर रहा था उन्हें शांत रखने की कोशिश कर रहा था अब बाहर सब तरफ अंधेरा हो चुका था मैं उन लोगों को धीरज दे ही रहा था कि तभी हम सबने बोगी पर खरोच नहीं की आवाज सुनी मैंने सबको एकदम शांत रहने को कहा कुछ देर बाद सब अपने आप ही शांत हो गया तभी किसी ने जोर-जोर से बोगी के दरवाजों को पीटना शुरू किया उस आवाज से हम सब चौक गए और बहुत घबरा आ गए उन सब चीजों की वजह से मैं भी बहुत घबराया हुआ था पर बस एक ही चीज थी कि जिस वजह से मुझ में थोड़ी हिम्मत बची थी और वह यह कि उन सब मजदूरों की मुझ पर जिम्मेदारी थी किसी भी हालत में मुझे उन सब की जान बचानी थी लेकिन कोई बार-बार दरवाजों को पीटता चला जा रहा था मैंने फिर से इशारे से सबको शांत रहने को कहा और बोगी की खिड़की को थोड़ा सा उठाकर बोगी के बाहर देखा आज शायद पूर्णिमा की रात क्योंकि रात होने के बावजूद भी बाहर अच्छी खासी रोशनी थी मैंने फिर से यहां वहां नजर घुमाई तो देखा कि बाहर भूपेंद्र खड़ा था सूखे पत्ते की तरह वह काप रहा था वह इतना घबराया हुआ था कि घबराहट में उसे सांस भी नहीं आ रही थी मैंने धीरे से ही उसे आवाज दी भूपेंद्र जल्दी से अंदर आ जाओ और मैंने धीरे से उस बोगी का दरवाजा खोला लेकिन वो अंदर आ ही नहीं रहा था व का वही खड़ा था तभी उसने उंगली से सामने की ओर इशारा करते हुए बोला व वो सामने वहां कोई है मैंने उसे कहा भूपेंद्र वहां कोई नहीं है तुम बस जल्दी से अंदर आ जाओ तो उसने चिल्लाकर कहा दिख नहीं रहा क्या तुम लोगों को वहां कोई है तो मैंने फिर से उसे कहा भूपेंद्र तुम अपने साथ-साथ दूसरों की जान भी खतरे में डाल रहे हो जल्दी से अंदर आ जाओ और फिर बात करते करते अचानक ही उसकी आवाज बदल गई अरे वह सामने दिख नहीं रहा क्या वो वहां पेड़ के पीछे वो इंसान नहीं है पक्का कोई आत्मा है मैंने भूपेंद्र की तरफ देखा तो वह अजीब तरह से अपनी गर्दन को पीछे मोड़ते हुए देख रहा था और फिर अचानक ही वह नीचे गिर पड़ा और मेरी आंखों के सामने भूपेंद्र अपने आप ही घसीट हुआ जंगल में चला जा रहा था जैसे कि कोई उसकी टांग पकड़कर उसे घसीटते हुए ले जा रहा था और वह चिल्लाए जा रहा था मुझे बचाओ साहब मुझे बचा लो मैं घर जाना चाहता हूं ना जाने उस वक्त मुझ में कहा से इतनी हिम्मत आई थी मैंने पास ही पड़ी अपनी बंदूक उठाई और एक दो जो बहादुर मजदूर थे उन्हें साथ लेकर बोगी से नीचे कूद पड़ा और जिस दिशा में भूपेंद्र घसीट हुआ गया था हम भी उसी दिशा में दौड़ते हुए चले गए कि भूपेंद्र एक पेड़ को पीठ लगाकर बैठा हुआ था लेकिन वो अजीब तरह से बैठा हुआ था हमारे वहां आने की आहट को सुनकर उसने हमारी तरफ देखा सा साहब आओ य मेरे पास आओ मुझे ठीक से देखो मैंने कहा था ना कि कोई है इस जंगल में कोई है पर आपको मुझ पर यकीन नहीं था आपने बात को नहीं माना मैं पागल नहीं हूं और ऐसा कहकर उसने पास ही पड़ा हुआ एक पत्थर उठाया और उसे अपने सर पर जोर-जोर से मारने लगा वो देख मैं बहुत डर गया हाथ में बंदूक तो थी पर उसका कुछ भी फायदा नहीं था सामने भूपेंद्र था या कोई और था कुछ पता नहीं था और फिर गोली चलाता तो भी किस पर उस एक मिनट के अंदर ही भूपेंद्र लहू लहान हो गया उसका यह हाल देखकर हमारे पसीने छूट गए थे सब बहुत घबराए हुए थे फिर भी हम सब दौड़कर उसके पास चले गए और हम सब ने उसे चारों पकड़े थे तो किसी ने उसके पैर पकड़े थे पर उसमें जैसे कोई शैतानी ताकत थी कि वह हम चारों से भी समला नहीं जा रहा था तभी मैंने देखा कि आगे कुछ ही दूरी पर वही शैतान खड़ा था और मुझे देख मुस्कुरा रहा था मुझे पता नहीं था कि अब क्या करना है इस बार उस शैतान को देख मुझे इतना डर नहीं लग रहा था शायद इसका कारण यह मजदूर ही थे जिनकी वजह से मुझ में अब भी हिम्मत बाकी थी और उस शैतान को देख एक बात तो मैं समझ गया था कि वह नहीं चाहता था कि हम में से कोई भी उस जंगल में रुके और उसकी मर्जी के खिलाफ उसकी मालकिन उसकी जगह पर कुछ भी करें तो मैंने बस उसे हाथ जोड़े और चिल्लाते हुए कहा हम सब कल ही यहां से चले 41 जाएंगे हम माफ कर दो हमें पता नहीं था कि यह जंगल तुम्हारा घर है यह गरीब मजदूर है इन्हें मारने से तुम्हें कुछ हासिल नहीं होगा माफ कर दो जाने दो इन्हें और मेरी उस बात के बाद वह परछाई धुए की तरह हवा में बिखर गई भूपेंद्र भी नॉर्मल हो गया पर उसके सर से अब भी खून बह रहा था तो हम किसी तरह उसे लेकर बोगी के पास पहुंचे और सबसे पहले मैंने भूपेंद्र को फर्स्ट एड दिया उस रात एक मिनट के लिए भी मेरी आख नहीं लगी और दूसरे दिन सुबह हम सब वहां से निकल गए कुछ मजदूरों को हॉस्पिटल में एडमिट किया गया तो कुछ मजदूरों को घर भेज दिया गया और फिर मैंने उस जंगल के और वहां के हालात के बारे में एक लंबी सी रिपोर्ट बनाई और मेरे इस्तीफे के साथ ही उसे डिपार्टमेंट को भेज दिया उसके बाद पता नहीं वहां फिर से काम शुरू हुआ भी या नहीं पर आज भी मुझे मेरे जन्मदिन पर वो भयानक रात याद आती है 





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